दीपशिखा सिकरवार, नई दिल्ली
एचडीएफसी बैंक फॉरेन इनवेस्टमेंट लिमिट बढ़वाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस पर पांच साल पहले फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) पॉलिसी में हुए बदलाव का असर पड़ सकता है। इस पॉलिसी के तहत एचडीएफसी बैंक की पैरंट कंपनी हाउसिंग डिवेलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (एचडीएफसी) विदेशी कंपनी हो गई थी। एचडीएफसी बैंक में फॉरेन इनवेस्टमेंट लिमिट बढ़ाने की ऐप्लिकेशन पर सोमवार को फैसला हो सकता है।
एचडीएफसी बैंक में विदेशी निवेश की सीमा अभी 49 पर्सेंट है। बैंक चाहता है कि इसे बढ़ाकर 67.55 पर्सेंट किया जाए। हालांकि इसकी पैरंट कंपनी को विदेशी फर्म माना गया है। इस हिसाब से बैंक में विदेशी निवेश पहले ही 74 पर्सेंट की सीमा पार कर चुका है। बैंकिंग सेक्टर में विदेशी निवेश की लिमिट इतनी ही है।
इस मामले में फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) की सोच से वाकिफ दो सरकारी सूत्रों ने बताया कि बैंक में अधिक विदेशी निवेश की इजाजत देते हुए उस पर पेनाल्टी लगाई जा सकती है। दरअसल, बैंक ने एफआईपीबी का अप्रूवल लेने के बाद अधिक विदेशी निवेश हासिल नहीं किया है। उसमें पहले से ही फॉरेन इनवेस्टमेंट ज्यादा है। सूत्रों ने यह भी कहा कि एचडीएफसी बैंक में और ज्यादा विदेशी निवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी। फाइनेंस मिनिस्ट्री ने एफडीआई पॉलिसी के मुताबिक एचडीएफसी बैंक मामले में लॉ मिनिस्ट्री की राय मांगी है। एफआईपीबी, फाइनेंस मिनिस्ट्री के तहत ही काम करती है। फाइनेंस मिनिस्ट्री ने इस बारे में डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) से भी राय मांगी है। आरबीआई बैंकिंग रेगुलेटर है, जबकि डीआईपीपी एफडीआई पॉलिसी बनाता है। ऊपर जिन सरकारी सूत्रों का जिक्र किया गया है, उनमें से एक ने बताया, 'एफआईपीबी सबकी बातों को ध्यान में रखते हुए इस बारे में फैसला करेगा।' अगर संबंधित मंत्रालयों की राय नहीं मिली होगी तो इस बारे में फैसला टाला जा सकता है। दिसंबर में भी मामले को इसी वजह से टाला गया था।
2009 की एफडीआई पॉलिसी में कहा गया था कि अगर किसी फर्म में विदेशी निवेश 50 पर्सेंट से ज्यादा है तो उसे विदेशी माना जाएगा। अगर किसी कंपनी के 50 पर्सेंट से ज्यादा शेयर विदेशियों के पास हैं, तो उसे भी ओवरसीज कंपनी माना जाएगा। अगर ऐसी कंपनी दूसरी भारतीय फर्म में पैसा लगाती है, तो उसे भी विदेशी निवेश माना जाएगा। इस पॉलिसी में एफडीआई, फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टमेंट, फॉरेन करेंसी कन्वर्टिबल बॉन्ड, कन्वर्टिबल प्रीफरेंस शेयर और एडीआर/जीडीआर सबको फॉरेन इनवेस्टमेंट माना गया था। पॉलिसी लाए जाने के बाद सरकार ने बैंकों को खास छूट दी। एफडीआई लिमिट वाले सेक्टर्स में डाउनस्ट्रीम इनवेस्टमेंट और ब्रांच एक्सपैंशन को इससे छूट दी गई। हालांकि बैंकों के लिए भी वही एफडीआई पॉलिसी लागू है।
एचडीएफसी बैंक फॉरेन इनवेस्टमेंट लिमिट बढ़वाने की कोशिश कर रहा है, लेकिन इस पर पांच साल पहले फॉरेन डायरेक्ट इनवेस्टमेंट (एफडीआई) पॉलिसी में हुए बदलाव का असर पड़ सकता है। इस पॉलिसी के तहत एचडीएफसी बैंक की पैरंट कंपनी हाउसिंग डिवेलपमेंट फाइनेंस कॉरपोरेशन (एचडीएफसी) विदेशी कंपनी हो गई थी। एचडीएफसी बैंक में फॉरेन इनवेस्टमेंट लिमिट बढ़ाने की ऐप्लिकेशन पर सोमवार को फैसला हो सकता है।
एचडीएफसी बैंक में विदेशी निवेश की सीमा अभी 49 पर्सेंट है। बैंक चाहता है कि इसे बढ़ाकर 67.55 पर्सेंट किया जाए। हालांकि इसकी पैरंट कंपनी को विदेशी फर्म माना गया है। इस हिसाब से बैंक में विदेशी निवेश पहले ही 74 पर्सेंट की सीमा पार कर चुका है। बैंकिंग सेक्टर में विदेशी निवेश की लिमिट इतनी ही है।
इस मामले में फॉरेन इनवेस्टमेंट प्रमोशन बोर्ड (एफआईपीबी) की सोच से वाकिफ दो सरकारी सूत्रों ने बताया कि बैंक में अधिक विदेशी निवेश की इजाजत देते हुए उस पर पेनाल्टी लगाई जा सकती है। दरअसल, बैंक ने एफआईपीबी का अप्रूवल लेने के बाद अधिक विदेशी निवेश हासिल नहीं किया है। उसमें पहले से ही फॉरेन इनवेस्टमेंट ज्यादा है। सूत्रों ने यह भी कहा कि एचडीएफसी बैंक में और ज्यादा विदेशी निवेश की इजाजत नहीं दी जाएगी। फाइनेंस मिनिस्ट्री ने एफडीआई पॉलिसी के मुताबिक एचडीएफसी बैंक मामले में लॉ मिनिस्ट्री की राय मांगी है। एफआईपीबी, फाइनेंस मिनिस्ट्री के तहत ही काम करती है। फाइनेंस मिनिस्ट्री ने इस बारे में डिपार्टमेंट ऑफ इंडस्ट्रियल पॉलिसी एंड प्रमोशन (डीआईपीपी) और रिजर्व बैंक ऑफ इंडिया (आरबीआई) से भी राय मांगी है। आरबीआई बैंकिंग रेगुलेटर है, जबकि डीआईपीपी एफडीआई पॉलिसी बनाता है। ऊपर जिन सरकारी सूत्रों का जिक्र किया गया है, उनमें से एक ने बताया, 'एफआईपीबी सबकी बातों को ध्यान में रखते हुए इस बारे में फैसला करेगा।' अगर संबंधित मंत्रालयों की राय नहीं मिली होगी तो इस बारे में फैसला टाला जा सकता है। दिसंबर में भी मामले को इसी वजह से टाला गया था।
2009 की एफडीआई पॉलिसी में कहा गया था कि अगर किसी फर्म में विदेशी निवेश 50 पर्सेंट से ज्यादा है तो उसे विदेशी माना जाएगा। अगर किसी कंपनी के 50 पर्सेंट से ज्यादा शेयर विदेशियों के पास हैं, तो उसे भी ओवरसीज कंपनी माना जाएगा। अगर ऐसी कंपनी दूसरी भारतीय फर्म में पैसा लगाती है, तो उसे भी विदेशी निवेश माना जाएगा। इस पॉलिसी में एफडीआई, फॉरेन इंस्टीट्यूशनल इनवेस्टमेंट, फॉरेन करेंसी कन्वर्टिबल बॉन्ड, कन्वर्टिबल प्रीफरेंस शेयर और एडीआर/जीडीआर सबको फॉरेन इनवेस्टमेंट माना गया था। पॉलिसी लाए जाने के बाद सरकार ने बैंकों को खास छूट दी। एफडीआई लिमिट वाले सेक्टर्स में डाउनस्ट्रीम इनवेस्टमेंट और ब्रांच एक्सपैंशन को इससे छूट दी गई। हालांकि बैंकों के लिए भी वही एफडीआई पॉलिसी लागू है।
No comments:
Post a Comment